शुक्रवार, मई 29, 2015

एक उम्मीद ने दिल को मारा, एक उम्मीद पर दिल कायम है

एक उम्मीद ने दिल को मारा, एक उम्मीद पर दिल कायम है
हम अब और कुछ नहीं हैं अनंत, फ़क़त उम्मीद ही अब हम हैं

एक उम्मीद है जो हँसते हैं, एक उम्मीद है कि जो हम ख़ुशी हैं
एक उम्मीद में चश्म-तर है, एक उम्मीद है कि जिसका ग़म है

एक उम्मीद है कि बच हम निकलेंगे, उसके इश्क़ के सहरा से
एक उम्मीद हैं कि उसके बंजर दिल में कहीं कोई जमीं नम हैं

एक उम्मीद हैं वो जिन्दा है, एक उम्मीद है कि वो अब भी बोलेगा
एक उम्मीद है कि हम कह सकेंगे, हमरा दिल मर गया, ये भरम है

--अनुराग अनंत

शनिवार, मई 16, 2015

जिनकी पेशानियों पर खुद कातिल लिखा है

जिनकी पेशानियों पर खुद कातिल लिखा है
वो दूसरों की पेशानियों के निशां पढ़ रहे हैं

जिनसे न समझे गए हमारे जज्बात अबतक
वो ख़ामोशी में लिपटे हमारे अरमां पढ़ रहे हैं

तुम गुलाम हो, सर ख़म किये हुए जमीं पढ़ रहे हो
हम कलंदर है, सर तान कर आसमां पढ़ रहे हैं

इन बच्चों को सियासत का सबक मत पढ़ाइए
ये मासूम बच्चे अभी बाब-ए-इमां(1) पढ़ रहे हैं

मैं अपने हौसलों के संग तनहा ही चला था
पर मेरे मुद्दई मुझ तनहा को कारवां पढ़ रहे हैं

एक जमीं पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई लिखा हैं
दुनिया वाले उन जमीं को हिन्दोस्तां पढ़ रहे हैं

(1) इमान का अध्याय
--अनुराग अनंत