रविवार, सितंबर 27, 2015

दिल से उठती आहों का असर पूछते हैं..!!


दिल से उठती आहों का असर पूछते हैं 
है मरने में कितनी कसर पूछते हैं

आँखों से घायल करके जिगर को 
है कैसा उनका ये हुनर पूछते हैं

जो जबरन मेरे तसव्वुर पर काबिज़ हुए हैं
है मुसलसल मुझे किसकी फिकर पूछते हैं

जो लोग बरसों से घर को लौटे नहीं हैं
मैं अब जाता नहीं क्यों घर पूछते हैं

बगबनों ने ही क्यों जड़ें कटीं "अनंत"
मरते हुए ये सवाल अब शज़र पूछते है

तुम्हारा- अनंत

सोमवार, सितंबर 21, 2015

जब से वो मेरे ख्वाब में आने लगी है !!

जब से वो मेरे ख्वाब में आने लगी है
मेरी तबियत रह रह के मुस्काने लगी है

साँसों को खबर ही नहीं है साजिशों की
धड़कन आजकल कुछ छिपाने लगी है

जिंदगी के मायने कुछ यूं बदलने लगे हैं
हम उसे, वो हमें जिंदगी बताने लगी है

इश्क़ की राह में अँधेरा ही रास आता है
अब हसरत खुद ही दिए बुझाने लगी है

इश्क़ ने सब कुछ यूं गुलाबी किया है
कि जिंदगी हमें पास बिठाने लगी है

ये शाम हुई "अनंत" कि क्या हुआ है
याद उसकी क्यों गुनगुनाने लगी है

तुम्हारा--अनंत

शनिवार, सितंबर 19, 2015

अँधेरे मुस्काते हैं, उदास उजाले हैं..!!

अँधेरे मुस्काते हैं, उदास उजाले हैं
हमने अपने आंसू बच्चों से पाले हैं

संसद कहती है वो हमारी संरक्षक है
जैसे कसाई बकरों के रखवाले हैं

हम सारा सहरा पैदल नाप के बैठे हैं
यकीं न हो तो देखो पाँव में छाले हैं

भूख से मरते मरते मंगुआ ने पूछा
साहेब अच्छे दिन कब आने वाले हैं

वो कहते हैं चुप रहो, मौत आ जाएगी
साहेब, जल्दी ही खिसियाने वाले हैं

सवालों की जद में उनका दम घुटता है
कुछ पूछने पर बस गरियाने वाले हैं

दंगे करवाना तो महज उनका शौक है बस
वर्ना वो तो चैन-ओ-अमन फ़ैलाने वाले है

जिनको लिखना था कलम बेंच कर बैठे हैं
जिनको कहना था उनके मुंह पर ताले हैं

सच कहने पर "अनंत" घर भी जल सकता है
इसलिए हमने अपने घर-बार खुद ही बाले हैं

तुम्हारा--अनंत