शुक्रवार, अक्तूबर 16, 2015

ये बेसब्र धड़कन, आवारा साँसें..!!

ये बेसब्र धड़कन, आवारा साँसें
जो छू लें तुमको तो करार आये

है तल्ख़ धूप का ये जो मौसम
खुदा करे न दिल पे दरार आये

उसके आने से दिल ज़ख़्मी हुआ है
या ! रब अब न कोई बहार आये

फकत उसके यहीं के खातिर
हम हँस के अपनी गर्दन उतर आये

कर के दागी हम अपना पहलु
उन्सका दमन निखार आये

तुम्हारा-अनंत


ये हाल जो हमारा हो गया है..!!

ये हाल जो हमारा हो गया है
ये हाल मोहब्बत ने ही किया है

हँसते-हँसते जो मर सका है
इस जहाँ में बस वो जिया है

हमें अब प्यास लगती नही है
हमने अपना आंसू पिया है

इससे बढ़कर अब क्या दे सकेंगे
हमने तुमको अपना दिल दिया है

कुछ आवारा परिंदे खूब रोये
लगता है कोई शज़र गिरा है

उससे इश्क का अब क्या सबूत लायें
मरते-मरते हमने उसका नाम लिया है

तुम्हारा अनंत

    

मंगलवार, अक्तूबर 13, 2015

क्या कहें कहने पर रुसवाई तो होगी..!!

क्या कहें कहने पर रुसवाई तो होगी
तुम्हे याद हमारी कभी आई तो होगी

कल हम तुम्हारा नाम लेकर मर गए हैं
ये बात तुम्हे हवाओं ने बताई तो होगी

वो ग़ज़ल जो हमने सिर्फ तुमपे लिखी थी
कभी तुमने भी अकेले में वो गाई तो होगी

हमने छुपाए हैं अपने सब दर्द तुमसे
तुमने भी कोई बात हमसे छिपाई तो होगी

शब-ए-फुरकत पे इन आँखों ने समंदर बहाया
तुम्हारी आँखों ने भी एक नदी बहाई तो होगी

तुम्हारी आवाज है इस दिल में अबतक बाकी
हमारी हँसी भी थोड़ी तुममे समाई तो होगी

तुम्हारा-अनंत