शनिवार, अप्रैल 30, 2016

ये जुमलों की महारत है, कुछ और नहीं...!!

ऐ मेरे दिल-ए-नादां, तू यूं खुश न हो
ये जुमलों की महारत है, कुछ और नहीं

ये जो उनकी चटक सुनहली तकरीरें हैं
ये ख्वाबों की तिजारत है, कुछ और नहीं

वो हमें बस एकलव्य, सम्भूक समझते हैं
ये रामायण, महाभारत है, कुछ और नहीं

ये जो काले दस्तूर, ये जेलें, ये जिन्दानें हैं
ये हमसे उनकी हिकारत है, कुछ और नहीं

वो जो चाहें कहें इसे, उनकी अपनी मर्ज़ी है
ये तेरा-मेरा, हमारा भारत है, कुछ और नहीं

अनुराग अनंत

अपने एहसासों को रिश्तों का इल्जाम न दे....!!

अपने एहसासों को रिश्तों का इल्जाम न दे
उल्फत को यार अब और कोई नाम न दे

एक और प्याला मौत का सबब बन सकता है
साकी प्यासा ही रहने दे, हमें कोई जाम न दे

जिंदगी तूने हमें फकत धूप ही धूप बक्शी है
दोपहर ही रहने दे, मेरे हिस्से में शाम न दे

मैं जनता हूँ, कोई खबर अच्छी हो नहीं सकती
उससे कह दो वो हमें अब कोई पैगाम न दे

उनके इल्मी उजाले में क्या जला, क्या कहें
वो हमें अब गाफिल ही रहने दे, इल्हाम न दे

ये जिंदगी उसे याद करने में बीती है “अनंत”
या खुदा किसी और को अब ऐसा काम न दे

अनुराग अनंत

इस दर्द को बर्बाद कौन करे..!!

नाशाद ही रहने दो दिल को
इस दिल अब शाद कौन करे

ये दर्द मुझे उसका तोफा है
इस दर्द को बर्बाद कौन करे

मैं यादों का वाहिद कैदी हूँ
इन यादों से आजाद कौन करे

कातिल और मुंसिफ वो ही है
अब उससे फ़रियाद कौन करे

वो चाहे मैं खुद को क़त्ल करूँ
पर मुझको जल्लाद कौन करे

यहाँ साये दरख्त निगलते हैं
इस शहर को आबाद कौन करे

हरसू धूप ही धूप का कब्ज़ा है
इस धूप को शमशाद कौन करे

अनुराग अनंत

बुधवार, अप्रैल 06, 2016

हमने खुद को खूब बर्बाद किया

कुछ मेरी राहें भी दुश्वार रहीं
कुछ हमराही ने भी न साथ दिया

बस कुछ ऐसा सफ़र कटा मेरा
जैसे किसी ने नसों को काट लिया

वो जिससे मैंने कभी न जीतना चाहा
बस उसी ने अक्सार मुझको मात दिया

ये जिंदगी जैसे-तैसे बसर हुई मेरी
रात को दिन, दिन को रात किया

वो संगदिल, पत्थर का बना हुआ
उससे रोया, उससे फ़रियाद किया

संग उसके हम जो न आबाद हुए
हमने खुद को खूब बर्बाद किया

कोई पूछे जिंदगी में क्या हुआ अनंत
वो हमको भूले, हमने उनको याद किया

--अनुराग अनंत

सोमवार, अप्रैल 04, 2016

खाख आबाद रहूँ जब दिल आबाद ही नहीं रहा


एक उसकी याद है जो दर छोडती ही नहीं है
एक वो है जिसे हमारा दर याद ही नहीं रहा

न दिल जलेगा अब, न जिगर ही सुलगेगा 
अच्छा हुआ उल्फत का फसाद ही नहीं रहा

हसरत तो है फिर से हमें कोई कतल तो करे
पर यहाँ उस जैसा कोई जल्लाद ही नहीं रहा

क्या गाफिल बने ये दिल, क्या दिल की करे
तुझे मिलके ये दिल अब आज़ाद ही नहीं रहा

क्या शादगी, क्या नाशादगी सब एक सा लगे 
हद-ए-हासिल था जो वो शमशाद ही नहीं रहा

मुझमे क्या बचा है अब "अनंत" सब वीरान है
खाख आबाद रहूँ जब दिल आबाद ही नहीं रहा

अनुराग अनंत