मंगलवार, अप्रैल 19, 2011

मेरा कितना है ,तेरा कितना ,

इस सुबह में मेरे हिस्से का सवेरा कितना है ,
चराग बुझा कर देख लो, अँधेरा कितना है  ,
तेरे नाम पर तो दावे बहुत लोग करते हैं ,
दिल कहता है आजमा कर देख लूँ, तू  मेरा कितना है,
उस डेरे से उडा था ,इस डेरे पर है ,उस डेरे पर बैठेगा ,
खुदा जाने, इस परिंदे का ,डेरा कितना है ,
भागता हूँ रातो-दिन ,पर अब तक भाग नहीं पाया ,
कोई बतला दे उसकी यादों का ,ये  घेरा कितना है ,
गुनाह हुआ है मुहब्बत में ''अनंत ''तुझसे  भी ,मुझसे भी ,
न जाने इस गुनहा में कुसूर मेरा कितना है ,तेरा कितना ,
 ''तुम्हारा --अनंत '' 

रविवार, अप्रैल 17, 2011

मैं मान नही सकता

मनाना है मुझको तो मुहब्बत से मना लो तुम ,
दिखोगे आँख मुझको तो ,मैं मान नही सकता ,
तलवारें सर  काटती होंगी ,मैं मान सकता हूँ ,
तलवारें  इरादा -ओ -हौसला काटें  ,मैं मान नही सकता ,
दिल ने कह दिया तो कह दिया ,अब क्या कहना,क्या सुनना ,
दिल के अलवा किसी का कहा, मैं मान नही सकता ,
नासेह न जाने कितना कुछ समझाया था मुझको ,
पर मैने भी कह दिया, खुद को अजमाए बिना ,मैं मान नही सकता,
लागे हों लाख पहरे तो  लगे रहने दो अब  ''अनन्त'' 
उसके कूचे जाए बिना, मैं मान नहीं सकता ,
तुम्हारी आँखें हाँ कहती हैं,तुम्हारी जुबाँ न  कहती  हैं ,
सच्ची आँखों के आगे ,झूठी जुबाँ कि बात मैं,मान नही सकता,
तुम्हारा  --अनंत 

शुक्रवार, अप्रैल 15, 2011

वो शहर इलाहाबाद न होता !

मैं जीस्त के  सारे गम भूल जाता ,
गर वो मुझे अब तक याद  न होता ,
 मुस्कुरा ले  दिल ! ये कहता अपने दिल से मैं ,
गर दिल बेचारा ये, मेरा नाशाद न होता ,
ये दर्द की दौलत मुझे कैसी मिलती यार, 
गर मैं उसकी चाहत में, इस कदर बर्बाद न होता ,
बड़ा तल्ख़ था वो वक़्त, जिसने हमें शायर बनाया हैं, 
हम कायर हो गए होते, गर इरादा फौलाद न होता ,
बड़ी तरीके से मारा हैं, उसने हमें प्यार में अपने,
कौन मरता हंस करके ,गर वो यूँ हंसी जल्लाद न होता ,
कई भटके हुए आशिक बसे हैं,  इस अदब के जंगल में,
गर उन्हें मंजिल मिल गयी होती, ये जंगल आबाद न होता ,
एक शहर में दो संगम हो नहीं सकते ,
हमारा मिलन हो गया होता, गर वो शहर इलाहाबाद न होता ,
तुम्हारा --अनंत                                                         
                                                       

सोमवार, अप्रैल 11, 2011

हवाओं में बुत

मंजिलें एक हैं ,एक रास्ते  हैं ,
वो हमारे वास्ते हैं ,हम उनके वास्ते हैं ,
इन आँखों में फ़कत उनकी तश्वीर बसती है ,
हम हवाओं में भी  उनके  ही बुत तरासते हैं, 
वो खामोस हैं ,दुनिया को ये लग रहा है ,
दुनिया  को क्या पता ,वो हमे आँखों से पुकारते है ,
आँखों की चोरी तो इश्क में लाजमी  है ''अनंत ''
हम आँखें चुरा -चुरा ,कर एक दूजे को निहारते है ,
तुम्हारा -- अनंत