सपनों जैसा कोई अपना मिल जाता तो बेहतर था
सर मंडराता ये खतरा जो टल जाता तो बेहतर था
एक हिमालय भारी भारी छाती पे लिए घूम रहा हूँ
दर्द का ये पापी पर्वत जो गल जाता तो बेहतर था
इस सूरज की तेज तपिश में सब कुछ पिघल रहा है
नफरत वाला ये सूरज जो ढल जाता तो बेहतर था
इक रावण है, जो तेरे भीतर, मेरे भीतर हँसता है
किसी दशहरे ये रावण भी जल जाता तो बेहतर था
इश्क़ की छलिया गली में हम ये ख्याल लिए टहलते हैं
कोई मासूम सा छलिया हमको भी छल जाता तो बेहतर था
वो जो मुझको उसका रातों-दिन लाशों पे हँसना खलता है
तुमको भी कभी किसी का मरना खल जाता तो बेहतर था
अनुरग अनंत
सर मंडराता ये खतरा जो टल जाता तो बेहतर था
एक हिमालय भारी भारी छाती पे लिए घूम रहा हूँ
दर्द का ये पापी पर्वत जो गल जाता तो बेहतर था
इस सूरज की तेज तपिश में सब कुछ पिघल रहा है
नफरत वाला ये सूरज जो ढल जाता तो बेहतर था
इक रावण है, जो तेरे भीतर, मेरे भीतर हँसता है
किसी दशहरे ये रावण भी जल जाता तो बेहतर था
इश्क़ की छलिया गली में हम ये ख्याल लिए टहलते हैं
कोई मासूम सा छलिया हमको भी छल जाता तो बेहतर था
वो जो मुझको उसका रातों-दिन लाशों पे हँसना खलता है
तुमको भी कभी किसी का मरना खल जाता तो बेहतर था
अनुरग अनंत