जुम्बिश
जुम्बिश-ए-इश्क दिल में कुछ यूं रही है "अनंत" / जब जब धड़की है धडकन आशिक हुए हैं हम
शनिवार, अक्टूबर 28, 2017
आईने सा साफ होता जा रहा है ..!!
आईने सा साफ होता जा रहा है
मसीहा अब सांप होता जा रहा है
आदमी बुलबुला है,ये मैं जनता था
आदमी अब भाप होता जा रहा है
अनंत
मेरे लबों पे ये जो मुस्कुराहट है..!!
मेरे लबों पे ये जो मुस्कुराहट है
ये मेरे भीतर की कड़वाहट है
मेरा लहज़ा जो लरजता रहता है
ये तेरे वापस आने की आहट है
मैं बात दर बात बदलता रहता हूँ
ना जाने कैसी अज़ीब घबराहट है
ये ना ग़ज़ल, ना नज़्म, ना कविता है
ये मेरे भीतर गूँजती बड़बड़ाहट है
'अनंत' तुम जिसे मेरा हुनर कहते हो
वो कुछ नहीं, बस एक छटपटाहट है
अनुराग अनंत
न कोई रहबर, न कोई रहजन..!!
न कोई रहबर, न कोई रहजन
न कोई पंडित, न कोई हरिजन
न कोई बंधन, न कोई बेड़ी
न कोई चूड़ी, न कोई कंगन
न कोई दर, न दीवार कोई
न कोई घर, न कोई आंगन
न कोई पाना, न कोई खोना
न कोई मिलना, न कोई बिछड़न
न कोई राहत, न कोई आफ़त
न सुकून कोई, न कोई तड़पन
मेरी मुझसे अब कुछ यूं दोस्ती हो
कि सारी दुनिया से हो जाए अनबन
मेरी नसों में बहे कोई जोगी
मेरे लहू गाए कोई जोगन
अनुराग अनंत
तुम मेरी ऐसी प्यारी ख़ता रहे हो..!!
जो खुद को इतना ऊंचा उठा रहे हो
तुम औरों को बौना बता रहे हो
बस तुम हो तुम ही तुम हो जहां में
ये अज़ब भरम है, जो जता रहे हो
आज तुम्हरा पता मिलता नहीं है
तुम एक अरसा मेरा पता रहे हो
साथ ऐसे थे कि समाए थे मुझमें
अब दूर ऐसे हो कि सता रहे हो
कि जिसने मुझको "मैं" किया है
तुम मेरी ऐसी प्यारी ख़ता रहे हो
-अनुराग अनंत
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