जब पुराने यारों की याद आती है
इक अजीब सी कसक कसकसाती है
वो चौराहों का हो-हल्ला गूंज जाता है
वो नुक्कड़ के मिश्रा की चाय याद आती है
कालेज की दीवारों पर लिखे हैं नाम अब तक
निकलता हूँ जब उधर से निगाहें दौड़ जातीं है
पुरानी डायरी के पन्नों पर लिखी मेरी गज़लों से
कालेज के बरामदे मे टहलते दोस्तों की आवाज़ आती है
खनकती है सुषमा और अनुश्री चहकती है
संदीप,भास्कर और अनंत की तिकड़ी मुसकुराती है
पहले तो चले आते थे मेरे यार, मेरे साथ घर तक
अब तो महज मेरे साथ मेरी तनहाई आती है
तुम्हारा--अनंत
इक अजीब सी कसक कसकसाती है
वो चौराहों का हो-हल्ला गूंज जाता है
वो नुक्कड़ के मिश्रा की चाय याद आती है
कालेज की दीवारों पर लिखे हैं नाम अब तक
निकलता हूँ जब उधर से निगाहें दौड़ जातीं है
पुरानी डायरी के पन्नों पर लिखी मेरी गज़लों से
कालेज के बरामदे मे टहलते दोस्तों की आवाज़ आती है
खनकती है सुषमा और अनुश्री चहकती है
संदीप,भास्कर और अनंत की तिकड़ी मुसकुराती है
पहले तो चले आते थे मेरे यार, मेरे साथ घर तक
अब तो महज मेरे साथ मेरी तनहाई आती है
तुम्हारा--अनंत
2 टिप्पणियां:
बहुत खूब, अनंत! पुराने दिनों में लौट गए...
अच्छी गज़लें
एक टिप्पणी भेजें