तुम मेरे दिलो-जॉ से उतर क्यों नहीं जाते
किसी ख्वाब की तरह टूट कर बिखर क्यों नहीं जाते
क्या बताऊँ अक्सर क्यों चले जाते हैं परिंदे
खड़े रहते हैं वहीँ, और कहीं शज़र नहीं जाते
तुम्हारी याद के मारे कई अजनबी मेरे भीतर रहते है
मर मर कर जीते हैं कमब्खत मर नहीं जाते
कुछ मुसाफिर हैं जो मुसलसल सफर में ही हैं
वो हर जगह जाते हैं मगर घर नहीं जाते
मैं तबतक शायर हूँ, जबतक जिन्दा हूँ
मैं तबतक जिन्दा हूँ, जबतक ज़ख्म ये भर नहीं जाते
अनुराग अनंत
किसी ख्वाब की तरह टूट कर बिखर क्यों नहीं जाते
क्या बताऊँ अक्सर क्यों चले जाते हैं परिंदे
खड़े रहते हैं वहीँ, और कहीं शज़र नहीं जाते
तुम्हारी याद के मारे कई अजनबी मेरे भीतर रहते है
मर मर कर जीते हैं कमब्खत मर नहीं जाते
कुछ मुसाफिर हैं जो मुसलसल सफर में ही हैं
वो हर जगह जाते हैं मगर घर नहीं जाते
मैं तबतक शायर हूँ, जबतक जिन्दा हूँ
मैं तबतक जिन्दा हूँ, जबतक ज़ख्म ये भर नहीं जाते
अनुराग अनंत
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