तू मेरी ग़ज़ल थी मैं तुझे लिखना चाहता था
मैं हूबहू तुझ जैसा दिखना चाहता था
वक़्त ने मुझको पत्थर बना दिया वार्ना
मैं अक्सर से झरनों सा बहना चाहता था
एक बात है जो मैं अब किसी से कह ना सकूंगा
वो बात मैं तुझसे, बस तुझसे कहना चाहता था
कुछ मजबूरियाँ थीं, जो मैं ढह ना सका अबतक
वार्ना मैं एक कच्चे मकान सा ढहना चाहता था
मैं तेरे इश्क़ में बंजारे का बंजारा ही रह गया
मैं तेरे दिल के किसी कोने में बसना चाहता था
मैं नहीं ठहरा, ठहरता तो मर गया होता
पर मैं दो घड़ी ठहर कर मरना चाहता था
मेरी कहानी हदों के मारे आदमी की कहानी है
मैं आदमी होने की सारी हदों से गुजरना चाहता था
तुमसे किए वादे मेरी बेकरारी का बाईस हैं
मैं तुझ जैसा वादों से मुकरना चाहता था
ना जाने क्या वजह है "अनंत" साबूत बचा हूँ मैं
मैं तेरी याद में टूट कर बिखरना चाहता था
तुम्हारा-अनंत
मैं हूबहू तुझ जैसा दिखना चाहता था
वक़्त ने मुझको पत्थर बना दिया वार्ना
मैं अक्सर से झरनों सा बहना चाहता था
एक बात है जो मैं अब किसी से कह ना सकूंगा
वो बात मैं तुझसे, बस तुझसे कहना चाहता था
कुछ मजबूरियाँ थीं, जो मैं ढह ना सका अबतक
वार्ना मैं एक कच्चे मकान सा ढहना चाहता था
मैं तेरे इश्क़ में बंजारे का बंजारा ही रह गया
मैं तेरे दिल के किसी कोने में बसना चाहता था
मैं नहीं ठहरा, ठहरता तो मर गया होता
पर मैं दो घड़ी ठहर कर मरना चाहता था
मेरी कहानी हदों के मारे आदमी की कहानी है
मैं आदमी होने की सारी हदों से गुजरना चाहता था
तुमसे किए वादे मेरी बेकरारी का बाईस हैं
मैं तुझ जैसा वादों से मुकरना चाहता था
ना जाने क्या वजह है "अनंत" साबूत बचा हूँ मैं
मैं तेरी याद में टूट कर बिखरना चाहता था
तुम्हारा-अनंत
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