मंगलवार, मई 10, 2011

जब से बिछड़े हैं हम उनसे ,

जब से बिछड़े हैं हम उनसे ,
हम कुछ खोए-खोए हैं ,
कोई अरमान-ए-दिल अब न  जगाए ,
वो बड़ी मुश्किल से सोए हैं ,
एक-एक शेर ज़ख्म है मेरे ,
ग़ज़ल के धागे में बड़ी आहिस्ते से पिरोए हैं ,
उनके हमारे इश्क की दास्ताँ है बस इतनी ,
वो हमारी मोहब्बत पर हँसे हैं  ,हम उनकी मोहब्बत पर रोए हैं ,
क्या कमाया अब तलक जिन्दगी में हमने ,
कुछ याद के मोती हैं जिसे दिल में सजोए हैं  ,
उनके प्यार ने हमको कुली बना दिया ''अनंत'' ,
उनकी यादों के सामान हमने दिन-रात ढोए हैं ,  
तुम्हारा --अनंत 

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