रविवार, दिसंबर 06, 2015

तुम ही कहो इससे बड़ा इंकलाब क्या होगा...!!

अपने कातिल को ही सरदार कहना पड़ता है
हमें इससे बढ़कर और अज़ाब क्या होगा

हमने अपनी हथेलियों पे जान रक्खी है
तुम ही कहो इससे बड़ा इंकलाब क्या होगा

हमारे यहाँ तो चरागों ने ही रोशनी कर दी
तुम रखो अब तुम्हारा आफताब क्या होगा

सारी रात अँधेरे में बसर कर दी हमने
सुब्ह को लाए जो ये महताब क्या होगा

हमने तुम्हारी असली सूरत पहचान ली है
हटा दो चेहरे पर से अब ये नक़ाब क्या होगा

वो मंजर देखा है हमने कि अब सो न पाएंगे
जो नींद ही नहीं आनी तो फिर ख्वाब क्या होगा

उनकी बातें ही चमन के चेहरे बिगाड़ देतीं है
वो जो बोल पाएं तो फिर तेज़ाब क्या होगा

इन अदालतों से आस नहीं कि उसका इन्साफ करे
अब देखना ये है, या खुदा तेरा हिसाब क्या होगा

वो डराते हैं हमें कि कुछ ख़राब हो जायेगा "अनंत"
जो होना था हो गया ख़राब अब इससे ख़राब क्या होगा

तुम्हारा-अनंत

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