नजाकत से पढ़ी जाए, नफासत से पढ़ी जाए
हम शायरों की शायरी, शराफत से पढ़ी जाए
हम शायरों की शायरी, शराफत से पढ़ी जाए
बगावत कर रही है मेरी नज़्म-ओ-गज़ल यारों
पसीने की ग़ज़ल को रुपयों में न तोला जाए
उनकी आँखों मे नमी है जिनके चूल्हे ठंडे हैं
चलो थोड़ी हमदर्दी की तपिश की जाए
चेहरों पर चस्पे हैं यहाँ कई-कई चेहरे
फरेबी चेहरों के असल चेहरे की नुमाईस की जाए
नेकी की राह पर बदी के खिलाफ
चलो साथ मिल कर लड़ाई की जाए
मौत पूछे जब किसे दूं पहले शहादत
मौत पूछे जब किसे दूं पहले शहादत
हर एक बन्दे की तरफ से पहल फरमाइश की जाए
तुम्हारा --अनंत
1 टिप्पणी:
ग़ज़ल के भाव बहत सुन्दर हैं ग़ज़ल का मतला शिल्प की द्रष्टि से उत्तम है
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