शनिवार, नवंबर 12, 2011

तिरंगा लपेटा है ,

एक  इंसान साज़िस में मारा था.................................गाँव आया है ,

इस टूटी हुई चटाई पर कौन लेटा है ,
दर्द जिसका गहरा है ,घाव छोटा है ,
एक इंसान साज़िस में मारा था गाँव आया है ,
जिस्म पर जिसके कफ़न के जगह तिरंगा लपेटा है ,
आज कल एक अजब लड़ाई है मेरे वतन में  ,
एक ओर किसान बाप है ,एक ओर  जवान (सैनिक)बेटा है ,
क्यों हँसा रहे हो हमको हम रो पड़ेंगे ,
कैसे बताएं हमने इन आँखों में क्या-क्या समेटा है ,
एक हमारा पेट है जो भूख से ही भर जाता है ,
एक उनका पेट है जो सारा वतन खा कर भी भूखा है ,

तुम्हारा  -- अनंत

यकीन कैसे हो ,

हम जी रहे हैं इसका हमें यकीन कैसे हो ....................................
हम जी रहे हैं इसका हमें यकीन कैसे हो ,
आसमाँ ने आज तक पुछा नहीं ऐ जमीन कैसे हो ,
जिस इंसान ने खुद कभी गौरैया की पीरा झेली हो ,
वो इंसान फिर बाज सा कमीन कैसे हो ,
लग रहा है यार फिर चुनाव आया है , 
नेता जी पूछ रहे हैं रामदीन कैसे हो ,
जो लोग कम थे उन्हें कमतर बना करके ,
बेहतर लोग सोचते हैं बेहतरीन कैसे हों ,
ये शहर मशीनों का है जहाँ हम रहने आये हैं ,
अब तो रात दिन सोचते हैं कि मशीन कैसे हो ,
बना कर पुर्जा मेरे दिल को किसी मशीन में लगा दिया ,
अब हँसे कैसे ये लैब ये आँखें ग़मगीन  कैसे हो ,

तुम्हारा -- अनंत