शनिवार, फ़रवरी 26, 2011

बड़ा मुश्किल है...

जिस्म  जाँ से नाराज हो जाए ,बड़ा मुश्किल है , 
धड़कन कुछ कहे ,दिल सुन न पाए ,बड़ा मुश्किल है ,
सांस लिए बगैर जिया जा सकता, तो जी लेता ,
जीता भी रहे कोई ,और सांस न आए ,बड़ा मुश्किल है ,
बच्चे खिलौनों को फ़खत खिलौना नहीं समझते , 
कोई तोड़ दे उन्हें , वो आंसू न बहाएं ,बड़ा मुश्किल है ,
समझदार लोग जब नसमझी करें, तो हम क्या करें ,
समझदारों को भी समझाया जाए ,बड़ा मुश्किल है ,
वो भूल गए हमे,बड़े माहिर निकले , 
हम उन्हें भूल जाएं, बड़ा मुश्किल है ,
''तुम्हारा -- अनंत ''

शुक्रवार, फ़रवरी 25, 2011

सब दिखाई दे रहा है ,

कुछ बोलिए या  न बोलिए ,सब सुनाई दे रहा है ,
क्या छिपा रहें हैं  बेवजह ,सब दिखाई दे रहा है ,
आप खुद की अदालत में अब कैसे बच पाएंगे  ,
आपका दिल आपके खिलाफ गवाही दे रहा है ,
जिस उम्र में कोई टॉफी के लिए ज़िद्द करता है ,
उसी उम्र में कोई माँ -बाप को  कमाई दे रहा है ,
आज २६ जनवरी है ,चलो टी0 वी० खोलो ,
लाल किले की छत  पर चढ़ कर कोई सफाई दे रहा है ,
हमने जिसे वोट दे कर, अपनी किश्मत सौंपी  थी,
 वो हमे घोटाले ,भूंख ,तड़प,और महंगाई दे रहा है , 
तुम्हारा-- अनंत  

बुधवार, फ़रवरी 23, 2011

उलझा हुआ सा है कुछ ...

उलझा हुआ सा है कुछ ,शायद ये मेरा दिल है ,
फोड़ दे जो सिर लहेरों का, बस वही शाहिल है ,
चाँद के रुखसार पर दाग है ,लोग कहते  है ,
हमे तो लगता है ,वो कोई प्यारा सा तिल है ,
 हम उनकी आँखों में,  डुबकी लगाये बैठे है ,
बेहतरीन है ये जगह ,ताउम्र रहने  के काबिल है,
इस महफ़िल में सब हलके- फुल्के नज़र आते हैं .
एक हम ही शायद जो इस कदर  बोझिल  हैं ,
हमे फिर से क़त्ल होने की हसरत है अनंत ,
क्या करें कम्बख़त बड़ा खुबसूरत कातिल है ,
"तुम्हारा --अनंत ''


 


रविवार, फ़रवरी 20, 2011

ये अजीब कैदखाना है....



ये अज़ब अफरातफरी ,रस्साकसी का माहौल है,
कल तक जहाँ पर दुकानें थीं ,आज वहाँ पर मॉल है ,
पसीना छूटता है ,जब टूटता है, कोई सपना ,
ये आँसू थमते ही नहीं ,आँखों में अज़ब  ढाल है ,
मेरे नंगे तन पर, जब उसने रेशमी टुकड़ा डाला ,
 मुहं से यूँ ही निकला ,ये मेरी ग़ुरबत का माखौल है ,
बैठ कर तन्हाई में ,तन्हाई ,तन्हा ही रो लेती है ,
दिल के दर्द पर ,ये आवाज़ की जली हुई ख़ाल है ,
इस आश्मां में करफू लगा है ,क्या करें ,
छिन गयी है उड़ान ,परिंदे सभी बेहाल हैं ,
हैं फसे जिसमे सभी, सब कैद है,
उस अज़ब कैदखाने का नाम रोटी दाल है,
तुम्हारा --अनंत





शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2011

मिली आँख जो उससे......

मिली आँख जो उससे ,वो पसीना -पसीना हो गयी ,
दबे पाँव ज़ीने  से उतरी, और उतर कर खो गयी ,
कल मैंने रात को रात भर जगाए रखा था ,
हुई सुबह तो दिन का दामन बिछा कर सो गयी ,
यूं तो पड़ा था मैं किसी नदि में सूखा -सूखा ,
तेरी याद की बारिश हुई और मुझे भिगो गयी ,
उस खंडहर के पीछे मैं अब कभी नहीं जाता ,
जहाँ तुम तन्हाई की सब्ज़ फसल बो गयी ,
अनंत मैं तो रुक गया होता ,थक कर बुझ गया होता ,
एक उसके आने की उम्मीद में जिंदगी चराग़ हो गयी ,
तुम्हारा --अनंत 


अनंत क्या कहें तुमसे...

अनंत क्या कहें तुमसे,बस दर्द कहता है,
ये खता तुम्हारी है, जो तुम उसे ग़ज़ल कहते  हो,
 तुम  दूर हो हमसे ,ये तुम्हारा कहना  है ,
हम तो  ये कहते  हैं , तुम हमारे दिल में रहते हो, 
पत्थर की तरह हम पड़े हैं ,न जाने कब से ,
ये तो तुम ही हो, जो हर वक़्त दरिया सा बहते हो,
हमारी हँसी को देख कर, दुनिया ग़फलत में है ,
लोग हमसे कहते  हैं ,तुम तो रोते वक़्त भी हँसते हो  ,
उस दिन वो कुछ नहीं बोला , जब हमने उससे  पूछा था ,
ए  ढलते हुए सूरज, तुम कैसे ढलते  हो,
जब दर्द होता है ,तब आंसू निकलता  है ,
तुम बेदर्द हो ,बेवजह  क्यों आँखे मलते हो  
तुम्हारा --अनंत