बुधवार, दिसंबर 28, 2016

ये जो आदमी आज तलवार सा हो गया है

कुछ तो है जो मुल्क में जो बदल रहा है
कोई सूरज है जो आहिस्ते से ढल रहा है

नफ़रतों  की तपिश बहुत बढ़ने लगी है
मुहब्बतों का हिमालय पिघल रहा है

इस झूठी हंसी से दम घुटने लगा है
खुल के रोने को ये दिल मचल रह है

ये बात उनको बहुत नागवार गुजरी
ये मजलूम कैसे सर उठा कर चल रहा है

मेरे रोने पे उसने भी मेरा साथ छोड़ दिया
जो बरसों मेरी आँखों का काजल रहा है

ये जो आदमी आज तलवार सा हो गया है
ये आदमी भी किसी के पाँव का पायल रहा है

जो मुंह में आया साफ़-साफ़ कह दिया हमने
जमाना बस इसी बात का कायल राह है  

अनुराग अनंत

बुधवार, अक्तूबर 19, 2016

ये सवाल मेरी जान भी ले सकता है...!!

ये सवाल मेरी जान भी ले सकता है
ये सवाल फकत कोई सवाल थोड़ी है

ये दिल की गिरह है, इश्क की जकड़न है
कच्चे धागों से बना कोई जाल थोड़ी है

याद उसकी बेसब्री का सबब है लेकिन
आशिक परेशान है बेहाल थोड़ी है

होता है इश्क में  अक्सर हो गया फिर से
मेरी आशिक़ी तेरे हुस्न का कमाल थोड़ी है

आजिज़ आ गया हूँ अपने दिल से "अनंत"
पर दिल, दिल ही तो है, कोई बवाल थोड़ी है

तुम्हारा-अनंत

रविवार, मई 08, 2016

एक नज़र से उसने हमारी जिंदगी तबाह की...!!

एक नज़र से उसने हमारी जिंदगी तबाह की
हमें नाज़ ये कि न हमने उफ़ की, न आह की

वो हमें लूटते रहे और हम मुसलसल लुटते रहे
न हमने खुद को बचाया, न खुद की परवाह की

क्या अज़ब बेरुखी थी क्या गज़ब जुल्म था
उसने न हमसे बातें की, न हमपे निगाह की

हम जिनके इश्क़ में ताउम्र शायरी करते रहे
उसने न हमें कभी दाद दी, न कभी वाह की

इश्क में उसको माना हमने अल-खुदा की तरह
पर न उससे कभी फ़रियाद की, न कभी चाह की

अनुराग अनंत

जो चला गया है जिस्त से बहुत पहले...!!

जो चला गया है जिस्त से बहुत पहले
मैं उसे न जाने कब से बुला रहा हूँ

ये तन्हाइयों की क्या अज़ब तीरगी है
कि जिसमे दिल अपना जला रहा हूँ

मेरे सब ख्वाब अब बच्चों से हो गए हैं
मैं उन्हें थपकियाँ दे दे कर सुला रहा हूँ

ये गज़ब प्यास है जो बुझती ही नहीं है
मैं रह रह कर उसकों आंसू पिला रहा हूँ

याद उसकी मेरा दिल लहू कर रही है
मैं जिगर चाक करके उसे भुला रहा हूँ

अनुराग अनंत

सच बोलने का जज्बा हम अपने अन्दर ले कर चलते हैं...!!

सच बोलने का जज्बा हम अपने अन्दर ले कर चलते हैं
हम वो पागल कतरे हैं जो दिल में समंदर ले कर चलते हैं

उनसे कह दो कि यहाँ हैं सर भी बहुत और बाजू भी बहुत
जो लाठी, झंडा, तलवार, खुखरी और खंजर ले कर चलते हैं

वो आंधी, तूफानों और काले कानूनों से हमें डरता फिरता है
उसे नहीं मालूम हम अपने संग में बवंडर ले कर चलते हैं

हम उन किसानों के बच्चे हैं जो फांसी के फंदों की भेट चढ़े
हम अपनी आँखों में अश्क नहीं, मौत के मंजर ले कर चलते हैं

वो ऐयारों के सरदार 56 इंच की छाती पर फूले नहीं समाते हैं
और हम हैं जो अपनी छाती पर सारा अम्बर ले कर चलते हैं

हम खून-पसीने, जीने-मरने वाले कब हद-ए-जिस्म में कैद रहे
हम अब तो दर-ए-मकतल को जिस्म ये जर्जर लेकर चलते हैं

अनुराग अनंत

शनिवार, अप्रैल 30, 2016

ये जुमलों की महारत है, कुछ और नहीं...!!

ऐ मेरे दिल-ए-नादां, तू यूं खुश न हो
ये जुमलों की महारत है, कुछ और नहीं

ये जो उनकी चटक सुनहली तकरीरें हैं
ये ख्वाबों की तिजारत है, कुछ और नहीं

वो हमें बस एकलव्य, सम्भूक समझते हैं
ये रामायण, महाभारत है, कुछ और नहीं

ये जो काले दस्तूर, ये जेलें, ये जिन्दानें हैं
ये हमसे उनकी हिकारत है, कुछ और नहीं

वो जो चाहें कहें इसे, उनकी अपनी मर्ज़ी है
ये तेरा-मेरा, हमारा भारत है, कुछ और नहीं

अनुराग अनंत

अपने एहसासों को रिश्तों का इल्जाम न दे....!!

अपने एहसासों को रिश्तों का इल्जाम न दे
उल्फत को यार अब और कोई नाम न दे

एक और प्याला मौत का सबब बन सकता है
साकी प्यासा ही रहने दे, हमें कोई जाम न दे

जिंदगी तूने हमें फकत धूप ही धूप बक्शी है
दोपहर ही रहने दे, मेरे हिस्से में शाम न दे

मैं जनता हूँ, कोई खबर अच्छी हो नहीं सकती
उससे कह दो वो हमें अब कोई पैगाम न दे

उनके इल्मी उजाले में क्या जला, क्या कहें
वो हमें अब गाफिल ही रहने दे, इल्हाम न दे

ये जिंदगी उसे याद करने में बीती है “अनंत”
या खुदा किसी और को अब ऐसा काम न दे

अनुराग अनंत

इस दर्द को बर्बाद कौन करे..!!

नाशाद ही रहने दो दिल को
इस दिल अब शाद कौन करे

ये दर्द मुझे उसका तोफा है
इस दर्द को बर्बाद कौन करे

मैं यादों का वाहिद कैदी हूँ
इन यादों से आजाद कौन करे

कातिल और मुंसिफ वो ही है
अब उससे फ़रियाद कौन करे

वो चाहे मैं खुद को क़त्ल करूँ
पर मुझको जल्लाद कौन करे

यहाँ साये दरख्त निगलते हैं
इस शहर को आबाद कौन करे

हरसू धूप ही धूप का कब्ज़ा है
इस धूप को शमशाद कौन करे

अनुराग अनंत

बुधवार, अप्रैल 06, 2016

हमने खुद को खूब बर्बाद किया

कुछ मेरी राहें भी दुश्वार रहीं
कुछ हमराही ने भी न साथ दिया

बस कुछ ऐसा सफ़र कटा मेरा
जैसे किसी ने नसों को काट लिया

वो जिससे मैंने कभी न जीतना चाहा
बस उसी ने अक्सार मुझको मात दिया

ये जिंदगी जैसे-तैसे बसर हुई मेरी
रात को दिन, दिन को रात किया

वो संगदिल, पत्थर का बना हुआ
उससे रोया, उससे फ़रियाद किया

संग उसके हम जो न आबाद हुए
हमने खुद को खूब बर्बाद किया

कोई पूछे जिंदगी में क्या हुआ अनंत
वो हमको भूले, हमने उनको याद किया

--अनुराग अनंत

सोमवार, अप्रैल 04, 2016

खाख आबाद रहूँ जब दिल आबाद ही नहीं रहा


एक उसकी याद है जो दर छोडती ही नहीं है
एक वो है जिसे हमारा दर याद ही नहीं रहा

न दिल जलेगा अब, न जिगर ही सुलगेगा 
अच्छा हुआ उल्फत का फसाद ही नहीं रहा

हसरत तो है फिर से हमें कोई कतल तो करे
पर यहाँ उस जैसा कोई जल्लाद ही नहीं रहा

क्या गाफिल बने ये दिल, क्या दिल की करे
तुझे मिलके ये दिल अब आज़ाद ही नहीं रहा

क्या शादगी, क्या नाशादगी सब एक सा लगे 
हद-ए-हासिल था जो वो शमशाद ही नहीं रहा

मुझमे क्या बचा है अब "अनंत" सब वीरान है
खाख आबाद रहूँ जब दिल आबाद ही नहीं रहा

अनुराग अनंत