रविवार, अप्रैल 17, 2011

मैं मान नही सकता

मनाना है मुझको तो मुहब्बत से मना लो तुम ,
दिखोगे आँख मुझको तो ,मैं मान नही सकता ,
तलवारें सर  काटती होंगी ,मैं मान सकता हूँ ,
तलवारें  इरादा -ओ -हौसला काटें  ,मैं मान नही सकता ,
दिल ने कह दिया तो कह दिया ,अब क्या कहना,क्या सुनना ,
दिल के अलवा किसी का कहा, मैं मान नही सकता ,
नासेह न जाने कितना कुछ समझाया था मुझको ,
पर मैने भी कह दिया, खुद को अजमाए बिना ,मैं मान नही सकता,
लागे हों लाख पहरे तो  लगे रहने दो अब  ''अनन्त'' 
उसके कूचे जाए बिना, मैं मान नहीं सकता ,
तुम्हारी आँखें हाँ कहती हैं,तुम्हारी जुबाँ न  कहती  हैं ,
सच्ची आँखों के आगे ,झूठी जुबाँ कि बात मैं,मान नही सकता,
तुम्हारा  --अनंत 

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