इश्क़ ने किस-किस को, क्या-क्या बना दिया ,
किसी को दरिया बना दिया ,किसी को सहरा बना दिया ,
जो लोग बढ़िया थे ,उनको बद्त्तर बना दिया ,
जो लोग बद्त्तर थे ,उन्हें बढ़िया बना दिया ,
आँखें ले गया वो ,अपनी आंखों में फँसा कर ,
आँखें होते हुए भी ,उसने हमे अंधा बना दिया ,
जलते हैं बेसबब ,बेदर्द वीराने में , तन्हाँ ही ,
उसकी आशिकी ने हमे ,बुझता दिया बना दिया ,
हम क्यों कर हुए शायर ,क्या हमसे पूछते हो ,
बीमार -ए-इश्क़ थे बस ,इसी बिमारी ने हमे शायर बना दिया ,
दास्ताँ क्या है हमारी '' अनंत '' बस इतना जान लो तुम ,
किसी को हमने मना किया ,किसी ने हमको मना किया ,
तुम्हारा --अनंत
3 टिप्पणियां:
सुंदर पंक्तियाँ ..... ज़िन्दगी इसी उहा-पोह के साथ चलती रहती है....
बहुत बढ़िया रचना .
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अच्छे भाव,...
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