शनिवार, नवंबर 12, 2011

यकीन कैसे हो ,

हम जी रहे हैं इसका हमें यकीन कैसे हो ....................................
हम जी रहे हैं इसका हमें यकीन कैसे हो ,
आसमाँ ने आज तक पुछा नहीं ऐ जमीन कैसे हो ,
जिस इंसान ने खुद कभी गौरैया की पीरा झेली हो ,
वो इंसान फिर बाज सा कमीन कैसे हो ,
लग रहा है यार फिर चुनाव आया है , 
नेता जी पूछ रहे हैं रामदीन कैसे हो ,
जो लोग कम थे उन्हें कमतर बना करके ,
बेहतर लोग सोचते हैं बेहतरीन कैसे हों ,
ये शहर मशीनों का है जहाँ हम रहने आये हैं ,
अब तो रात दिन सोचते हैं कि मशीन कैसे हो ,
बना कर पुर्जा मेरे दिल को किसी मशीन में लगा दिया ,
अब हँसे कैसे ये लैब ये आँखें ग़मगीन  कैसे हो ,

तुम्हारा -- अनंत 

3 टिप्‍पणियां:

S.N SHUKLA ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति , आभार.



कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .

vidya ने कहा…

हम जी रहे हैं इसका हमें यकीन कैसे हो ,
आसमाँ ने आज तक पुछा नहीं ऐ जमीन कैसे हो ,
जिस इंसान ने खुद कभी गौरैया की पीरा झेली हो ,
वो इंसान फिर बाज सा कमीन कैसे हो ,...


निशब्द हूँ...
आभार.

vidya ने कहा…

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