रविवार, अप्रैल 29, 2012

तू मुझे नज़र आती है


aमेरे हर ख़्वाब में, तू मुझे नज़र आती है ,
एक पल हाँथ में होती है, दुसरे पर बिखर जाती है,
तड़पता हूँ मैं, रेगिस्तान में पड़ी मछली की तरह,
देखता हूँ तुझको तो तबियत संवर जाती है,
तेरा मुझको देखना भी हरारत भरी छुवन है,
तू देखती है जब नस-नस सिहर जाती है,
मैं चुरा लेता हूँ आँख, तुझे देख कर न जाने क्यों,
और तू भी मुझे देख कर यूँ ही गुज़र जाती है,
याद आती नहीं तुझको इस आवारा शायर की,
या फिर याद करती है और धीरे से बिसर जाती है,
तू साहिल है बेशक ठुकरा दे मुझे,मैं फिर आऊंगा,
लहर हूँ मैं, और लहर ही साहिल से करीब जाती है


तुम्हारा --अनंत   

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