ये उलझन, ये बेबसी, ये मसायल, ये तगाफुल
मैं सोचता हूँ तुमसे न मिला था, तभी बेहतर था
तुमने मिल के कुछ यूं छुआ कि खिजां हो गया मैं
तुम न थे जिंदगी में तो, मैं एक सब्ज शजर था
क्या दिया, क्या लिया तुमने, जो हिसाब करता हूँ
हर तरफ आवाज उठती है, वो एक बेसबब सफ़र था
गज़ब है कि तुम्हारे साथ रहे और बचे भी रहे अब तक
या तो खुदा की रहमत थी, या फिर जीने का हुनर था
तुम्हारी हर अदा, मोहब्बत, इश्क़-ओ- फिकर की बातें
अब समझ में आता है कि वो तो साजिशों का कहर था
यूं लुटते रहे तुमसे और निभाते भी रहे अब तक
रेशमी इश्क़ था तुमसे, ये उस रेशम का असर था
-अनुराग अनंत
मैं सोचता हूँ तुमसे न मिला था, तभी बेहतर था
तुमने मिल के कुछ यूं छुआ कि खिजां हो गया मैं
तुम न थे जिंदगी में तो, मैं एक सब्ज शजर था
क्या दिया, क्या लिया तुमने, जो हिसाब करता हूँ
हर तरफ आवाज उठती है, वो एक बेसबब सफ़र था
गज़ब है कि तुम्हारे साथ रहे और बचे भी रहे अब तक
या तो खुदा की रहमत थी, या फिर जीने का हुनर था
तुम्हारी हर अदा, मोहब्बत, इश्क़-ओ- फिकर की बातें
अब समझ में आता है कि वो तो साजिशों का कहर था
यूं लुटते रहे तुमसे और निभाते भी रहे अब तक
रेशमी इश्क़ था तुमसे, ये उस रेशम का असर था
-अनुराग अनंत
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