शनिवार, मई 16, 2015

जिनकी पेशानियों पर खुद कातिल लिखा है

जिनकी पेशानियों पर खुद कातिल लिखा है
वो दूसरों की पेशानियों के निशां पढ़ रहे हैं

जिनसे न समझे गए हमारे जज्बात अबतक
वो ख़ामोशी में लिपटे हमारे अरमां पढ़ रहे हैं

तुम गुलाम हो, सर ख़म किये हुए जमीं पढ़ रहे हो
हम कलंदर है, सर तान कर आसमां पढ़ रहे हैं

इन बच्चों को सियासत का सबक मत पढ़ाइए
ये मासूम बच्चे अभी बाब-ए-इमां(1) पढ़ रहे हैं

मैं अपने हौसलों के संग तनहा ही चला था
पर मेरे मुद्दई मुझ तनहा को कारवां पढ़ रहे हैं

एक जमीं पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई लिखा हैं
दुनिया वाले उन जमीं को हिन्दोस्तां पढ़ रहे हैं

(1) इमान का अध्याय
--अनुराग अनंत

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