कोई ख्वाब ऐसा दिखाया न जाए
जो पूरा होने के काबिल न हो
ऐसे समंदर की रुसवाई तय है कि जिसकी
अपनी लहरें न हों, अपना साहिल न हो
दिल अपना लुटा करके हमने ये जाना
दिल उसको न देना, जिसको दिल ही न हो
साँसों के पैरों में एक अजब जंजीर है
और आप कहते हैं इस कदर बोझिल न हो
मैं उसे हर धड़कन में महसूस करने लगा हूँ
उसके दीदार में अब कोई झिलमिल न हो
ऐसी जिंदगी भी क्या जिंदगी है "अनंत"
जिस जिंदगी में कोई हसीं कातिल न हो
तुम्हारा-अनंत
जो पूरा होने के काबिल न हो
ऐसे समंदर की रुसवाई तय है कि जिसकी
अपनी लहरें न हों, अपना साहिल न हो
दिल अपना लुटा करके हमने ये जाना
दिल उसको न देना, जिसको दिल ही न हो
साँसों के पैरों में एक अजब जंजीर है
और आप कहते हैं इस कदर बोझिल न हो
मैं उसे हर धड़कन में महसूस करने लगा हूँ
उसके दीदार में अब कोई झिलमिल न हो
ऐसी जिंदगी भी क्या जिंदगी है "अनंत"
जिस जिंदगी में कोई हसीं कातिल न हो
तुम्हारा-अनंत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें