एक नज़र से उसने हमारी जिंदगी तबाह की
हमें नाज़ ये कि न हमने उफ़ की, न आह की
वो हमें लूटते रहे और हम मुसलसल लुटते रहे
न हमने खुद को बचाया, न खुद की परवाह की
क्या अज़ब बेरुखी थी क्या गज़ब जुल्म था
उसने न हमसे बातें की, न हमपे निगाह की
हम जिनके इश्क़ में ताउम्र शायरी करते रहे
उसने न हमें कभी दाद दी, न कभी वाह की
इश्क में उसको माना हमने अल-खुदा की तरह
पर न उससे कभी फ़रियाद की, न कभी चाह की
अनुराग अनंत
हमें नाज़ ये कि न हमने उफ़ की, न आह की
वो हमें लूटते रहे और हम मुसलसल लुटते रहे
न हमने खुद को बचाया, न खुद की परवाह की
क्या अज़ब बेरुखी थी क्या गज़ब जुल्म था
उसने न हमसे बातें की, न हमपे निगाह की
हम जिनके इश्क़ में ताउम्र शायरी करते रहे
उसने न हमें कभी दाद दी, न कभी वाह की
इश्क में उसको माना हमने अल-खुदा की तरह
पर न उससे कभी फ़रियाद की, न कभी चाह की
अनुराग अनंत
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