गुरुवार, जून 01, 2017

या मौला यूं तोड़ दे मुझको कि मैं बिखर जाऊँ..!!

या मौला यूं तोड़ दे मुझको कि मैं बिखर जाऊँ
कांच बनके  ना चुभं, खशबू सा इधर उधर जाऊं

तेरे गम में मैं रह रह कर जलूं चरागों की तरह
परवाने की तरह शम्मा से लिपट कर मर जाऊं

तेरी चाहत में मैं सब रास्ते भूल कर भटकूं
मैं इस तरह भटकूं कि अब अपने घर जाऊं

राह तुझसे खुले और राह तुझपे ही बंद हो जाए
तू मुझको बता मैं अब जाऊं भी तो किधर जाऊं

तेरी उल्फत वो ऐब है जिस्म में लहू सा बहता है
सुधर जाए जो ऐब मेरा, तो मैं भी अब सुधर जाऊं

तुम्हारा-अनत  

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