शनिवार, अक्टूबर 28, 2017

न कोई रहबर, न कोई रहजन..!!

न कोई रहबर, न कोई रहजन
न कोई पंडित, न कोई हरिजन

न कोई बंधन, न कोई बेड़ी
न कोई चूड़ी, न कोई कंगन

न कोई दर, न दीवार कोई
न कोई घर, न कोई आंगन

न कोई पाना, न कोई खोना
न कोई मिलना, न कोई बिछड़न

न कोई राहत, न कोई आफ़त
न सुकून कोई, न कोई तड़पन

मेरी मुझसे अब कुछ यूं दोस्ती हो
कि सारी दुनिया से हो जाए अनबन

मेरी नसों में बहे कोई जोगी
मेरे लहू गाए कोई जोगन

अनुराग अनंत

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