न कोई रहबर, न कोई रहजन
न कोई पंडित, न कोई हरिजन
न कोई बंधन, न कोई बेड़ी
न कोई चूड़ी, न कोई कंगन
न कोई दर, न दीवार कोई
न कोई घर, न कोई आंगन
न कोई पाना, न कोई खोना
न कोई मिलना, न कोई बिछड़न
न कोई राहत, न कोई आफ़त
न सुकून कोई, न कोई तड़पन
मेरी मुझसे अब कुछ यूं दोस्ती हो
कि सारी दुनिया से हो जाए अनबन
मेरी नसों में बहे कोई जोगी
मेरे लहू गाए कोई जोगन
अनुराग अनंत
न कोई पंडित, न कोई हरिजन
न कोई बंधन, न कोई बेड़ी
न कोई चूड़ी, न कोई कंगन
न कोई दर, न दीवार कोई
न कोई घर, न कोई आंगन
न कोई पाना, न कोई खोना
न कोई मिलना, न कोई बिछड़न
न कोई राहत, न कोई आफ़त
न सुकून कोई, न कोई तड़पन
मेरी मुझसे अब कुछ यूं दोस्ती हो
कि सारी दुनिया से हो जाए अनबन
मेरी नसों में बहे कोई जोगी
मेरे लहू गाए कोई जोगन
अनुराग अनंत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें