बस याद उनको करते रहते हैं
अब याद और कुछ नहीं रहता
बरसात अश्कों की बहुत है लेकिन
ये ग़नीमत है कि घर नहीं ढहता
ख़ामोशी ही है जो फ़क़त कह सकती है
ख़ामोश हूँ इसीलिए कुछ नहीं कहता
आंख से महज़ आँसू ही बहते रहते हैं
आँख से ख़ून क्योंकर नहीं बहता
बेख़ुदी में 'अनंत' सह गया दर्द इतना
जो होश में होता तो फिर नहीं सहता
अनुराग अनंत
1 टिप्पणी:
Bahut hi sunder rachna sir
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