उसकी आँखों के मकतब मे मोहब्बत पढ़ के आया हूँ
मैं कतरा हूँ दरिया का, सहरा से लड़ के आया हूँ
काटा था पर सैयाद ने कि उड़ न सकूँगा
जो उसने बुलया तो मैं उड़ के आया हूँ
एक डायरी मे रख कर, उसने मुझे गुलाब कर दिया
खोला जो किसी ने तो फूल से झड़ के आया हूँ
मैं एक सूखी हुई पंखुरी हूँ, तो क्या हुआ, मुझे होंठों से लगा लो
कसम खुदा की मैं खुद को मोहब्बत से मढ़ के आया हूँ
एक हरा -भरा दरख्त था मैं किसी जमाने में
किसी ने मेरी छाँव यूं खींची कि उखाड़ के आया हूँ
यूं तो कोई गरज न थी मुझे तुम्हारी महफिल मे आने की
पर क्या करू मैं तुम्हारी मोहब्बत मे पड़ के आया हूँ
मैं कतरा हूँ दरिया का, सहरा से लड़ के आया हूँ
काटा था पर सैयाद ने कि उड़ न सकूँगा
जो उसने बुलया तो मैं उड़ के आया हूँ
एक डायरी मे रख कर, उसने मुझे गुलाब कर दिया
खोला जो किसी ने तो फूल से झड़ के आया हूँ
मैं एक सूखी हुई पंखुरी हूँ, तो क्या हुआ, मुझे होंठों से लगा लो
कसम खुदा की मैं खुद को मोहब्बत से मढ़ के आया हूँ
एक हरा -भरा दरख्त था मैं किसी जमाने में
किसी ने मेरी छाँव यूं खींची कि उखाड़ के आया हूँ
यूं तो कोई गरज न थी मुझे तुम्हारी महफिल मे आने की
पर क्या करू मैं तुम्हारी मोहब्बत मे पड़ के आया हूँ
तुमहरा--अनंत
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