मंगलवार, जनवरी 06, 2015

बदनाम है हम यहाँ, हमें बदनाम रहने दो....!!

न बोलो तुम जुबां से,आँखों को कहने दो
बहता हूँ मैं भी, तुम भी खुद को बहने दो

एक अहसास है सीने में तुम्हारे भी मेरे भी
कोई नाम न दो इसको, इसे बेनाम रहने दो

ए नाम वालों तुमसे बस ये इल्तिजा है कि
बदनाम है हम यहाँ, हमें बदनाम रहने दो

बेकिनारा है दरिया, बिन साहिल है समंदर
कोई बांधों न इनपर बाँध, आर पार बहने दो

गिरी हैं जो तुम्हारी पलकें तो शाम तारी है
न उठाओ इनको कुछ देर और शाम रहने दो

छुड़ा कर हाँथ, वो ये कह कर, चली गयी
छेड़ो न मुझको अब और, घनश्याम रहें दो
--अनुराग अनंत

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