शनिवार, सितंबर 19, 2015

अँधेरे मुस्काते हैं, उदास उजाले हैं..!!

अँधेरे मुस्काते हैं, उदास उजाले हैं
हमने अपने आंसू बच्चों से पाले हैं

संसद कहती है वो हमारी संरक्षक है
जैसे कसाई बकरों के रखवाले हैं

हम सारा सहरा पैदल नाप के बैठे हैं
यकीं न हो तो देखो पाँव में छाले हैं

भूख से मरते मरते मंगुआ ने पूछा
साहेब अच्छे दिन कब आने वाले हैं

वो कहते हैं चुप रहो, मौत आ जाएगी
साहेब, जल्दी ही खिसियाने वाले हैं

सवालों की जद में उनका दम घुटता है
कुछ पूछने पर बस गरियाने वाले हैं

दंगे करवाना तो महज उनका शौक है बस
वर्ना वो तो चैन-ओ-अमन फ़ैलाने वाले है

जिनको लिखना था कलम बेंच कर बैठे हैं
जिनको कहना था उनके मुंह पर ताले हैं

सच कहने पर "अनंत" घर भी जल सकता है
इसलिए हमने अपने घर-बार खुद ही बाले हैं

तुम्हारा--अनंत

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