ये बेसब्र धड़कन, आवारा साँसें
जो छू लें तुमको तो करार आये
है तल्ख़ धूप का ये जो मौसम
खुदा करे न दिल पे दरार आये
उसके आने से दिल ज़ख़्मी हुआ है
या ! रब अब न कोई बहार आये
फकत उसके यहीं के खातिर
हम हँस के अपनी गर्दन उतर आये
कर के दागी हम अपना पहलु
उन्सका दमन निखार आये
तुम्हारा-अनंत
जो छू लें तुमको तो करार आये
है तल्ख़ धूप का ये जो मौसम
खुदा करे न दिल पे दरार आये
उसके आने से दिल ज़ख़्मी हुआ है
या ! रब अब न कोई बहार आये
फकत उसके यहीं के खातिर
हम हँस के अपनी गर्दन उतर आये
कर के दागी हम अपना पहलु
उन्सका दमन निखार आये
तुम्हारा-अनंत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें