कुछ मेरी राहें भी दुश्वार रहीं
कुछ हमराही ने भी न साथ दिया
बस कुछ ऐसा सफ़र कटा मेरा
जैसे किसी ने नसों को काट लिया
वो जिससे मैंने कभी न जीतना चाहा
बस उसी ने अक्सार मुझको मात दिया
ये जिंदगी जैसे-तैसे बसर हुई मेरी
रात को दिन, दिन को रात किया
वो संगदिल, पत्थर का बना हुआ
उससे रोया, उससे फ़रियाद किया
संग उसके हम जो न आबाद हुए
हमने खुद को खूब बर्बाद किया
कोई पूछे जिंदगी में क्या हुआ अनंत
वो हमको भूले, हमने उनको याद किया
--अनुराग अनंत
कुछ हमराही ने भी न साथ दिया
बस कुछ ऐसा सफ़र कटा मेरा
जैसे किसी ने नसों को काट लिया
वो जिससे मैंने कभी न जीतना चाहा
बस उसी ने अक्सार मुझको मात दिया
ये जिंदगी जैसे-तैसे बसर हुई मेरी
रात को दिन, दिन को रात किया
वो संगदिल, पत्थर का बना हुआ
उससे रोया, उससे फ़रियाद किया
संग उसके हम जो न आबाद हुए
हमने खुद को खूब बर्बाद किया
कोई पूछे जिंदगी में क्या हुआ अनंत
वो हमको भूले, हमने उनको याद किया
--अनुराग अनंत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें