शनिवार, अप्रैल 30, 2016

अपने एहसासों को रिश्तों का इल्जाम न दे....!!

अपने एहसासों को रिश्तों का इल्जाम न दे
उल्फत को यार अब और कोई नाम न दे

एक और प्याला मौत का सबब बन सकता है
साकी प्यासा ही रहने दे, हमें कोई जाम न दे

जिंदगी तूने हमें फकत धूप ही धूप बक्शी है
दोपहर ही रहने दे, मेरे हिस्से में शाम न दे

मैं जनता हूँ, कोई खबर अच्छी हो नहीं सकती
उससे कह दो वो हमें अब कोई पैगाम न दे

उनके इल्मी उजाले में क्या जला, क्या कहें
वो हमें अब गाफिल ही रहने दे, इल्हाम न दे

ये जिंदगी उसे याद करने में बीती है “अनंत”
या खुदा किसी और को अब ऐसा काम न दे

अनुराग अनंत

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