सोमवार, अप्रैल 04, 2016

खाख आबाद रहूँ जब दिल आबाद ही नहीं रहा


एक उसकी याद है जो दर छोडती ही नहीं है
एक वो है जिसे हमारा दर याद ही नहीं रहा

न दिल जलेगा अब, न जिगर ही सुलगेगा 
अच्छा हुआ उल्फत का फसाद ही नहीं रहा

हसरत तो है फिर से हमें कोई कतल तो करे
पर यहाँ उस जैसा कोई जल्लाद ही नहीं रहा

क्या गाफिल बने ये दिल, क्या दिल की करे
तुझे मिलके ये दिल अब आज़ाद ही नहीं रहा

क्या शादगी, क्या नाशादगी सब एक सा लगे 
हद-ए-हासिल था जो वो शमशाद ही नहीं रहा

मुझमे क्या बचा है अब "अनंत" सब वीरान है
खाख आबाद रहूँ जब दिल आबाद ही नहीं रहा

अनुराग अनंत

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