वो मेरे इश्क़ को महज़ अफ़साना समझते हैं
जो दीवानगी नहीं जानते वो मुझे दीवाना समझते हैं
नई बात ये है कि कुछ भी नया हुआ ही नहीं है
पुरानी बात ये है कि वो सबकुछ पुराना समझते हैं
कभी दरख़्त, कभी मील के पत्थर के साए में बैठ गए
ये मुसाफ़िर हैं रास्ते को ही अपना आशियाना समझते हैं
ये महफ़िल, ये मेले, ये लोग सब के सब तुम्हें मुबारक़ हों
वो नहीं तो हम सारे शहर को ही अब वीराना समझते हैं
हम अपनी आखों के कोरों में बैठे चौकीदारी करते रहते हैं
हमें रोना नहीं आता 'अनंत' हम महज़ मुस्कुराना समझते हैं
अनुराग अनंत
जो दीवानगी नहीं जानते वो मुझे दीवाना समझते हैं
नई बात ये है कि कुछ भी नया हुआ ही नहीं है
पुरानी बात ये है कि वो सबकुछ पुराना समझते हैं
कभी दरख़्त, कभी मील के पत्थर के साए में बैठ गए
ये मुसाफ़िर हैं रास्ते को ही अपना आशियाना समझते हैं
ये महफ़िल, ये मेले, ये लोग सब के सब तुम्हें मुबारक़ हों
वो नहीं तो हम सारे शहर को ही अब वीराना समझते हैं
हम अपनी आखों के कोरों में बैठे चौकीदारी करते रहते हैं
हमें रोना नहीं आता 'अनंत' हम महज़ मुस्कुराना समझते हैं
अनुराग अनंत
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