बहुत दिन बाद वो मुझसे हंस कर बोली थी
जो मैंने यूं ही पुरानी डायरी खोली थी,
हर शफे पर उसका चेहरा उभर आया था
हर एक हर्फ़ पर उसकी हंसी ठिठोली थी,
डायरी के आखरी पन्ने पर कुछ मैंने गढ़ा था
गौर से देखा तो पाया दो कंगन ,एक घगरा ,एक चोली थी,
मुझे याद आया यो पुराना शहर वो पुरानी गली
जिसमे मैं नुक्कड़ वाला था,और वो किनारे वाली थी,
दो नन्हे हाँथ बने थे किसी बीच के पन्ने पर
एक हाँथ में कपडे की गुडिया थी ,एक हाँथ में कांच की गोली थी,
पढ़ी हरकत जो आपनी कहा मैंने हंस कर के
मैं भी ब़डा भोला था वो भी ब़डी भोली थी,
''तुम्हारा --अनंत ''
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