सोमवार, नवंबर 08, 2010

मैं मर गया हूँ बहुत पहेले....


मैं मर गया हूँ बहुत पहेले,अब तो जिन्दा लाश बाकी है,
वो हो गयी है परायी फिर भी उसे पाने की आस बाकी है।
मैं अश्कों का समंदर पी कर भी प्यासा हूँ,
न जाने कैसी कम्बख्क्त है जो ये प्यास बाकी है
क्यों टूटती नहीं नब्ज, क्यों धड़कन बंद नहीं होती,
न जाने इस जिस्म में कितनी सांस बाकी है
तुझे मैंने पाया था कुछ इस कदर, 
तू जितनी खुद के पास नहीं ,उससे ज्यादा मेरे पास बाकी है
मिल गया मेरा पुर्जा -पुर्जा ,पर मेरा दिल खो गया है,
बस उसी खोये हुये दिल की तलाश बाकी है
जिस जगह जला इश्क का दरिया ,मुहब्बत का समंदर झुलसा था 
उसी जगह पड़ी हुई तेरी यादों की कपास बाकी है
मेरी लाश को दफनाते वक़्त जब जमीन ने मना किया 
हाँथ फ़ैल कर आकाश ने कहा ,अभी तो सारा आकाश बाकी है
""तुम्हारा --अनंत''



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