जब बैठता कलम ले कर तेरी याद आती है,
मिलती है कलम कागज़ से ग़ज़ल बन जाती है,
तेरी आँखों के सूरमे पर लिखता हूँ पहले,फिर तेरी घटाओं जैसे बाल पर नज़र जाती है,
तेरे माथे का नूर पीता हूँ प्यासे की तरह,
फिर कलम रेंग कर जिगर में उतर जाती है,
तेरे बदन पर फैली बर्फ की उजली चमक से,
मेरी और कलम की आँख चौंधिया जाती है,
उतरता हूँ जब मैं तेरी नसों में अहिस्ते से,
एक कुआंरी अनछुई लड़की की आवाज आती है,
बहता हूँ घडी दो घडी तेरे लहू में घुल कर,
तेरे जिगर की धडकनों से मेरे दिल की फ़रियाद आती है,
बैठता हूँ कलम ले कर ग़ज़ल बन जाती है,
मिलती है कलम कागज़ से ग़ज़ल बन जाती है,
तुम्हारा--अनंत
1 टिप्पणी:
सुन्दर, बधाई
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