बुधवार, फ़रवरी 23, 2011

उलझा हुआ सा है कुछ ...

उलझा हुआ सा है कुछ ,शायद ये मेरा दिल है ,
फोड़ दे जो सिर लहेरों का, बस वही शाहिल है ,
चाँद के रुखसार पर दाग है ,लोग कहते  है ,
हमे तो लगता है ,वो कोई प्यारा सा तिल है ,
 हम उनकी आँखों में,  डुबकी लगाये बैठे है ,
बेहतरीन है ये जगह ,ताउम्र रहने  के काबिल है,
इस महफ़िल में सब हलके- फुल्के नज़र आते हैं .
एक हम ही शायद जो इस कदर  बोझिल  हैं ,
हमे फिर से क़त्ल होने की हसरत है अनंत ,
क्या करें कम्बख़त बड़ा खुबसूरत कातिल है ,
"तुम्हारा --अनंत ''


 


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