रविवार, फ़रवरी 20, 2011

ये अजीब कैदखाना है....



ये अज़ब अफरातफरी ,रस्साकसी का माहौल है,
कल तक जहाँ पर दुकानें थीं ,आज वहाँ पर मॉल है ,
पसीना छूटता है ,जब टूटता है, कोई सपना ,
ये आँसू थमते ही नहीं ,आँखों में अज़ब  ढाल है ,
मेरे नंगे तन पर, जब उसने रेशमी टुकड़ा डाला ,
 मुहं से यूँ ही निकला ,ये मेरी ग़ुरबत का माखौल है ,
बैठ कर तन्हाई में ,तन्हाई ,तन्हा ही रो लेती है ,
दिल के दर्द पर ,ये आवाज़ की जली हुई ख़ाल है ,
इस आश्मां में करफू लगा है ,क्या करें ,
छिन गयी है उड़ान ,परिंदे सभी बेहाल हैं ,
हैं फसे जिसमे सभी, सब कैद है,
उस अज़ब कैदखाने का नाम रोटी दाल है,
तुम्हारा --अनंत





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