अनंत क्या कहें तुमसे,बस दर्द कहता है,
ये खता तुम्हारी है, जो तुम उसे ग़ज़ल कहते हो,
तुम दूर हो हमसे ,ये तुम्हारा कहना है ,
हम तो ये कहते हैं , तुम हमारे दिल में रहते हो,
पत्थर की तरह हम पड़े हैं ,न जाने कब से ,
ये तो तुम ही हो, जो हर वक़्त दरिया सा बहते हो,
हमारी हँसी को देख कर, दुनिया ग़फलत में है ,
लोग हमसे कहते हैं ,तुम तो रोते वक़्त भी हँसते हो ,
उस दिन वो कुछ नहीं बोला , जब हमने उससे पूछा था ,
ए ढलते हुए सूरज, तुम कैसे ढलते हो,
जब दर्द होता है ,तब आंसू निकलता है ,
तुम बेदर्द हो ,बेवजह क्यों आँखे मलते हो
तुम्हारा --अनंत
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