गुरुवार, मार्च 10, 2011

जिन्दगी घाँस नोचती है

 किसी टीले पर अकेले बैठ कर सोंचती  है ,
जिन्दगी जब मायूस होती है तो घाँस नोचती है ,
पड़ती है  जब डांट सास की ससुराल में ,
माँ को याद करके बेटियाँ आंसू पोछती है ,
अँधेरी रात जब अँधेरे से परेशान हो जाती है ,
खुद घर से निकल कर जुगनूवों की टोलियाँ खोजती है,
तितलियाँ नादान हैं  ,मासूम हैं , पछ्ताएँगी ,
ये जो फरेबी फूलों का फरेबी रस चूसती हैं ,
बच्चें चले गए हैं परदेश ,क्या करें, अकेलें हैं ,
दो बूढी आँखें हैं  घर पर ,जो एक दूजे को देखती है ,
''अनंत'' उन बुजुर्गों की आँखों से फिर आंसू नहीं बहते ,
जिनकी  बहती आँखों को नन्हीं हथेलियाँ पोंछती है,
 तुम्हारा- -अनंत   
  

1 टिप्पणी:

dastan-e-awara ने कहा…

Anant, really these are precious feelings .I want to transmit it towards that men who left their parents .