किसी टीले पर अकेले बैठ कर सोंचती है ,
जिन्दगी जब मायूस होती है तो घाँस नोचती है ,
पड़ती है जब डांट सास की ससुराल में ,
माँ को याद करके बेटियाँ आंसू पोछती है ,
अँधेरी रात जब अँधेरे से परेशान हो जाती है ,
खुद घर से निकल कर जुगनूवों की टोलियाँ खोजती है,
तितलियाँ नादान हैं ,मासूम हैं , पछ्ताएँगी ,
ये जो फरेबी फूलों का फरेबी रस चूसती हैं ,
बच्चें चले गए हैं परदेश ,क्या करें, अकेलें हैं ,
दो बूढी आँखें हैं घर पर ,जो एक दूजे को देखती है ,
''अनंत'' उन बुजुर्गों की आँखों से फिर आंसू नहीं बहते ,
जिनकी बहती आँखों को नन्हीं हथेलियाँ पोंछती है,
तुम्हारा- -अनंत
1 टिप्पणी:
Anant, really these are precious feelings .I want to transmit it towards that men who left their parents .
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