वो अब तक उलझी है ,सुलझा रहा हूँ ,
एक हवा सी आई ,याद जग गयी उसकी ,
मैं थपकियाँ दे -दे कर, उसे सुला रहा हूँ ,
कह गयी थी जाते वक़्त ,आवाज़ मत देना ,
वो चली गयी है ,और मैं उसे बुला रहा हूँ ,
एक उदास ग़ज़ल की आँखों में ,नमी के मिसरे ,
बिखरे हुए हैं ,और मैं उसे सजा रहा हूँ ,
जिस जगह बिछड़े थे हम ,ये उसी जगह पड़ा था ,
मैं टूटा हुआ दिल, झुनझुने सा बजा रहा हूँ ,
कुछ जलता हुआ सा है मेरे सीने में ,न जाने क्या है ?
मैं रो -रो कर , उसे अश्कों से बुझा रहा हूँ ,
जिंदगी आई ,ज़मीं पर बैठ गयी हंस कर ,
मैंने कहा ,अरे रुको मैं अपनी जाँ बिछा रहा हूँ ,
बहुत खोल दिया मैंने खुद को ,तुम्हारे सामने ''अनंत''
न जाने तुम कौन हो मेरे ,जो मैं राज -ए- दिल बता रहा हूँ ,
''तुम्हारा --अनंत ''
1 टिप्पणी:
amazing..............ek din chaand khud dharti par aayega.......tumahre liye.
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