गुरुवार, दिसंबर 07, 2017

मेरा अधूरापन मुकम्मल हो रहा है

मेरा अधूरापन मुकम्मल हो रहा है
मैं एक सवाल था जो हल हो रहा हूँ

अपनी आंखों से बहना छोड़ कर अब तो
मैं उसकी आँखों का काजल हो रहा हूँ

यूं संभला हूँ कि बहका बहका रहता हूँ
अकल आई है ऐसे कि पागल हो रहा हूँ

बरसात रूठी है हम पर बरसते नहीं बादल
मैं इस कदर बंजर हूँ कि बादल हो रहा हूँ

हर सांस खंजर है, नश्तर है हर धड़कन
मैं जी रहा हूँ कि मुसलसल घायल हो रहा हूँ

मैं उसकी कैद में हूँ ऐसे कि वो आज़ाद है मुझसे
मैं उसके हाँथ का कंगन, पाँव का पायल हो रहा हूँ

अनुराग अनंत

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